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जतरा टाना भगत Jatara Taana Bhagat

जतरा टाना भगत का बचपन साधारण ढंग से बीता लेकिन छोटी उम्र से ही अपने हम उम्र के मित्रों से इनका स्वभाव अलग था। जब जतरा भगत बचपने से किशोरावस्था में पहुँचे तो उस समय उन्होंने स्कूल पढ़ाई के बजाय जड़ी-बूटी से बीमारी ठीक करने की विद्या सीखने के लिए निकट में हेसराग ग्राम आया जाया करते थे। इसी क्रम में एक दिन वह एक पेड़ पर पक्षी का अंडा उतारने के लिए चढ़े तो वह अंडा नीचे गिर कर फूट गया। जिसमें भ्रूण दिखायी दिया जिसको देखकर जतरा के मन में आया यह तो जीवहत्या है उस दिन से उन्होंने जीव हत्या न करने का संकल्प लिया। इसी प्रकार सन 1914 ई. के अप्रैल माह में एक दिन जब जतरा मति(जड़ी-बूटी का ज्ञान) सीखने के क्रम में गुरदा कोना पोस्टर से स्नान करने गये वहीं स्नान के कर्म में उन्हें आत्मज्ञान हुआ अतः जतरा भगत के मुंह से जो उद्घोष हुआ वह आगे चलकर टाना पंथ बना।


जतरा भगत ने लोगों के बीच मांस न खाने, मदिरा पान न करने, पशु बलि रोकने, परोपकारी बनने, यज्ञोपवीत धारण करने, भूत प्रेत के अस्तित्व न माने आँगन में तुलसी चौरा स्थापित करने, गो सेवा करने तथा सभी सर प्रेम करने का उपदेश देना शुरू किया। यह सभी स्मरणीय है कि आदिवासी लोगों में मांस भोजन का सामान्य भाग है और टाना पंथ के अधिक विश्वासी उराँव आदिवासी ने उनकी बात सरलता से माननी शुरू कर दी और देखते – देखते उनके समर्थकों की अच्छी संख्या हो गई। जतरा भगत के इस पंथ का नाम टाना पड़ा और इन्हें मानने वाले लोग टाना भगत कहलाये। मूलत: टाना मंत्र अहिंसा और असहयोग का ही था।

जतरा भगत का प्रवचन सुनने के लिए दूर दराज से उराँव जनजाति के लोग आने लगे।

वृहस्पतिवार को सामूहिक प्रार्थना का दिन निश्चित तथा उस दिन हल जोतने की मनाही थी। टाना भगतों ने अंग्रेजों की मालगुजारी, चौकीदार टैक्स भी देना बंद कर दी। इस तरह गाँधी जी ने उनसे प्रभावित होकर अहिंसा और असहयोग आन्दोलन प्रारंभ कर दिया था।

इसी तरह हमारे आदिवासी पूर्वजों ने प्रकिती से ज्ञान अर्जित करते हुवे समाज सुधार के लिए काम किये और इसमें अंधविश्वासों की कोई जगह नही थी। आज जो नैतिक ज्ञान की बात करते हैं वे हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही प्रकृति से ज्ञान अर्जित करके लोगो मे प्रचार किये लेकिन धीरे धीरे आधुनिकता के नशे में हमने अपने पूर्वजों को कभी भी सही ढंग से जानने और समझने की कोशिस ही नहीं कि और आधुनिक चमक धमक में, बाहरी धर्म के प्रभाव और उनके अपने धार्मिक साम्राज्य के विस्तार की मानशिकता के कारण, अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ और हमारे पूर्वजो के ज्ञान को पाखंड और अंधविश्वास का नाम देकर हमारे लोगो को गुमहरा किया और सेवा के नाम पे अपने धर्म का गुलाम बनाने का सडयंत्र करना शुरू किए।

जोहार

Bishu Orawn


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