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जयपाल सिंह मुंडा (30 अप्रैल, 1947 संविधान सभा वाद -विवाद)

Updated: Aug 28, 2021

"अध्यक्ष महोदय, मैं पहले भी इसी हाउस में कह चुका हूं कि जमीन आदिवासी जीवन का आधार है। हम यहां एक ऐसी व्यवस्था पर विचार कर रहे हैं, जो केवल पूर्ण रूप से पृथक तथा आंशिक रूप से पृथक कहे जाने वाले प्रदेशों के आदिवासियों के लिए नहीं बल्कि इन प्रदेशों में बाहर रहने वाले लाखों आदिवासियों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है। बंगाल का उदाहरण लीजिए वहां लगभग 20 लाख आदिवासी ऐसे हैं जो न पृथक क्षेत्रों में आते हैं और न ही आंशिक रूप से पृथक क्षेत्रों में आते हैं। दोनों उप समितियों को उनकी समस्याओं पर विचार करना पड़ेगा। यद्यपि परिभाषा के अनुसार इनका संबंध केवल उन्हीं प्रदेशों से ही है, जिसे पृथक प्रदेश या आंशिक रूप से पृथक राज्य कहा जाता है।...

मैं चाहता हूं कि उप समितियों की रिपोर्ट मिलने तक इस धारा को स्थगित रखी जाए। "

-जयपाल सिंह मुंडा

(30 अप्रैल, 1947 संविधान सभा वाद -विवाद)



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