आदिवासी कौन है ?
- आदिवासी एकता परिषद
- Aug 24, 2020
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Updated: Aug 28, 2021
आदिवासी कौन एक संक्षिप्त परिचय आदिवासी शब्द का शाब्दिक अर्थ से ही मालूम पड़ता है कि आदिकाल से रहने वाले लोग अर्थात आदिवासी आदिवासी की पहचान उसकी संस्कृति से होती है आदिवासी समुदाय की खासियत उसकी अन्य समुदाय की तुलना में विशेष पहचान रखती है वह है प्रकृतिमय जीवन शैली, जीवन पद्धति :- सामूहिकता, सहभागिता , सहकारिता ,सादगी , प्रेम व उसका गौरवमय इतिहास, नामांककरण, पहनावा रहन-सहन, खानपान,रीति रिवाज, वार त्यौहार प्रकृति के चक्रवार के अनुसार चलना उसकी गौरवमय आदिवासी संस्कृति की खास विशेष व महत्व है।
-फतेलाल सोलंकी
आदिवासी एकता परिषद
"घोषणा-पत्र"
2018
www.adivasipeople.com
आदिवासी जीवन प्रणाली एवं मूल्यों की बात हम सोचते है तो दिखाई पड़ता है कि, हमारा जीवन सरल, सादगी पूर्ण, प्रकृति पूजक व प्रकृति मूलत, संवेदनशील, सहकारी और शोषणमूक्त था । हमारे जीवन में निजी स्वार्थ या महत्त्वाकांक्षाएं समाज के हित के खिलाफ नही जाती थी मूलतः आदिवासी समाज स्वायत्त, स्वतंत्र और स्वावलंबी था।जीवन की हर जरूरत जो बिल्कुल कम थी, प्रकृति में से लेता है। मृत्यु के साथ अपना शरीर प्रकृति को वापस कर देता था । लेकिन दुनिया में एक नई सभ्यता का जन्म हुआ, जिसको सब चीज ज्यादा से ज्यादा चाहिये। उनकी निजी अपेक्षाएँ बड़ी होने की वजह से इनको ज्यादा जगह चाहिए, ज्यादा कमाई चाहिए, इसलिए मानव व प्रकृति का शोषण चाहिए, दूसरों के साथ हमेशा झगड़ा चाहिए। इसलिए चंद लोगों ने जल-जंगल-जमीन और खनिज संपदा पर अपना कब्जा जमाने की कोशिश की, इसके लिए दुनिया में बडे-बड़े अस्त्र, शस्त्र, पैदा किये और युद्ध हुए ।

आदिवासी समाज जो घरती को अपनी माता समझता था, प्रकृति को पूजता था, और इन्सानियत को हमेशा ऊपर रखता था। वह इस दौड़ में पीछे रह गया। उसको कभी मालिक बनने का सोच ही नहीं आया। करीबन 10 हजार वर्ष से कृषि के विकास के साथ सम्पति पैदा हुई, इसके पीछे राज्य सत्ता का आर्विभाव हुआ। आदिवासी समाज जो सबके प्रति विश्वास रखता था । वह दुसरे समाज से हमेशा अलग-थलग होता रहा। अपने आपको बचाने के लिए जूझता रहा और सारी दुनिया में दुसरे समाजों के दमन और शोषण से पीड़ित होता रहा। दुनिया में दुसरे लोगों की संख्या बढ़ रही है, दुसरे लोगों की आयु बढ़ रही है, जब कि हमारी कई जातियों की जनसंख्या कम हो रही है। भारत में भी आदिवासी समाज की स्थिति खास तौर से अच्छी नहीं है। 85 प्रतिशत आदिवासी लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन जी रहे है आदिवासी जीवन जो की जंगल पर ही निर्भर था, वह जंगल कानून से छिन लिया गया और सदियों से दिन प्रतिदिन जीने की थोड़ी बहुत जमीन थी वह भी गैर आदिवासियों द्वारा छीन ली गई जिसको पैर रखने के लिये जगह नही होती है, उनके लिये अधिकारों की बात सिर्फ किताबी बन जाती है। 50 प्रतिशत से ज्यादा आदिवासी लोगों के पास आज जमीन नहीं है। देश में हमारी जनसंख्या 7 प्रतिशत है फिर भी हमारे पास देश की कुल जमीन के 1 प्रतिशत से भी कम जमीन है। हमारे लोगों के दिल में हमेशा डर रहता हैं कि मेरा कब क्या होगा।
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