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28 वां आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन, मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक सफलता के साथ संपन्न हुआ ।

आदिवासी एकता परिषद द्वारा आयोजित 28 वां आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन 13-14 जनवरी, 2021 को ग्राम बिलीडोज, जिला झाबुआ, मध्य प्रदेश में ऐतिहासिक सफलता के साथ संपन्न हुआ ।

पालघर महाराष्ट्र महासम्मेलन के पश्चात ही मध्य प्रदेश राज्य में होने वाले 28 वें आदिवासी सांस्कृतिक एकता महासम्मेलन की तैयारी पूरे उत्साह के साथ प्रारंभ हो चुकी थी । लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना के चलते जो तैयारी साल भर होना चाहिए उसे मात्र 2 महीने में ही पूर्ण करना समाज के कार्यकर्ताओं के सामने कठिन एवं बड़ी चुनौती थी ।


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इस चुनौती को आदिवासी एकता परिषद से जुड़े हुए सभी सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा स्वीकार किया गया और सकारात्मक ऊर्जा के साथ में तैयारी प्रारंभ की गई ।

झाबुआ महासम्मेलन को लेकर बैठकों का दौर नवंबर-2020 से प्रारंभ हुआ और निरंतर चलते रहा । इस बीच कोविड-19 चलते शासन प्रशासन की ओर से इस महासम्मेलन को रोकने हेतु कड़े प्रबंध किए गए किंतु कार्यकर्ताओं के बुलंद हौसले के सामने आखिरकार प्रशासन को महासम्मेलन की अनुमति देना पड़ा ।

महासम्मेलन की विधिवत शुरुआत 14 जनवरी 2021 को होना थी लेकिन 13 जनवरी 2021 को ही महा सम्मेलन स्थल पर हजारों की तादाद में कार्यकर्ताओं की उपस्थिति हो चुकी थी जिसके चलते अनौपचारिक रूप से 13 जनवरी 2021 को ही महासम्मेलन की शुरुआत हो चुकी थी ।

महासम्मेलन में पूर्व नियोजित कार्यक्रमानुसार ही सम्पन्न हुआ, किंतु कुछ कुछ निर्णय स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा समय परिस्थितियों को देखते हुए भी लिए गए ।

यह महासम्मेलन कई मायने में ऐतिहासिक रहा । कई चुनौतियों के बावजूद महासम्मेलन आयोजित हुआ,देश के कई कोनों से "आदिवासियत बचाओं यात्रा-2021" में सैकड़ों वाहनों के काफिले निकलकर महासम्मेलन स्थल पहुंचे, एक दिन पहले ही महासम्मेलन की अनौपचारिक शुरुआत करना पडी़, पार्किंग स्थल में हजारों वाहन खड़े होने के बावजूद पार्किंग स्थल छोटे-पड़े, महासम्मेलन का स्थल लाखों स्क्वायर फिट होने के बावजूद भी छोटा पड़ गया, पूरा झाबुआ वाहनों एवं लोगों से भर चुका था, आपवासी दिलीप सिंह भूरिया जी के स्टेच्यू से महारैली की शुरुआत हुई और शहीद टंट्या भील के स्टेच्यु से महारैली ने अपना विशाल रूप ले लिया, महासम्मेलन स्तर पर लगाई गई प्रदर्शनी ऐतिहासिक होकर लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी, पारंपरिक वस्त्र एवं खाद्य वस्तुओं के स्टॉल भी लोगों को खूब भायें और आखिर में सामग्री कम पड़ गई लोगों की मांगे पूरी नहीं हो सकी, अपेक्षा से कई गुना ज्यादा लोगों के आने के बावजूद भी सबको पर्याप्त भोजन,पानी व अन्य सुविधा मिल सकी, 13 जनवरी को ही अनौपचारिक रूप से महासम्मेलन की शुरुआत होने से कई कार्यकर्ताओं को मंच से अपनी बात रखने का मौका मिला,फिर भी समय कम पड़ा और पंडाल में कई सारे विद्वान व कर्मठ कार्यकर्ता थे जो मंच से अपनी बात कह सकते थे एवं ठीक ढंग से कह सकते थे वह भी शांतिपूर्ण तरीके से कार्यक्रम को सुनकर व देख कर गए । मध्य प्रदेश सहित देश के अनेक राज्य से आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधि बडी़ संख्या में उपस्थित रहे और उनके द्वारा महासम्मेलन हेतु यथासंभव सहयोग किया गया एवं मंच से समाज की एकता की ही बात कही गई ।

महासम्मेलन की थीम आत्मनिर्भर गांव,आत्मनिर्भर भारत एवं स्वाबलंबी एवं साथ ही निजीकरण व भोगवादी सभ्यता के कारण दुनिया विनाश की ओर जा रही हैं, आदि बातों का महान चित्रकार द्वारा चित्रित किया गया ।

कई राज्यों के कार्यकर्ता महासम्मेलन की तैयारी हेतु समय से पहले झाबुआ पहुंचकर अपना 100% सराहनीय योगदान व सहयोग दिया गया ।

मध्य-प्रदेश के मालवा निमाड़, महाकौशल,चंबल, बुंदेलखंड व बघेलखंड सहित देश भर के अधिकांश आदिवासी बहुल राज्य के समाज के सक्रिय एवं समर्पित लाखों कार्यकर्ता इस महासम्मेलन में शामिल हुए ।

कार्यकर्ताओं ने मिलकर कम से कम खर्चे में अच्छे से अच्छा कार्यक्रम कैसे हो सकता है, इस हेतू अपनी पूरी ताकत लगाई और कम खर्चे में अच्छा कार्यक्रम संपन्न हुआ ।

आदिवासी एकता परिषद के महा सम्मेलन को लेकर कई प्रकार के भ्रम व गतिरोध उत्पन्न करने के बावजूद भी कार्यकर्ताओं ने महासम्मेलन हेतु दिल खोलकर सहयोग किया और महा सम्मेलन को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाया ।

आदिवासी एकता परिषद से सक्रिय रुप से जुड़े हुए राज्य राजस्थान, गुजरात, दादरा नगर हवेली, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं के अलावा नई दिल्ली, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा आसाम के कार्यकर्ता व बुद्धिजिवी भी इस महासम्मेलन में उपस्थित होकर इस ऐतिहासिक रूप से सफल कार्यक्रम के साक्षी बने।

आदिवासी एकता परिषद की विचारधारा इस महासम्मेलन के माध्यम से आदिवासी समाज एवं अन्य लोगों बीच और अधिक स्पष्ट हो गई । इस महासम्मेलन से आदिवासी समाज के वैचारिक आंदोलन को एक नई दिशा व ऊंचाइयां मिलेगी ऐसा विश्वास हो रहा है ।

अधिकांश लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा धारण करके महासम्मेलन में शामिल हुए फिर चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी हो या अन्य किसी पेसे से जुड़ा हो । इस साल सांस्कृतिक कार्यक्रम महा सम्मेलन में नहीं हुए फिर भी कई राज्य के कार्यकर्ता अपने पारंपरिक वाद्य यंत्र लेकर आदिवासी सांस्कृतिक एकता महारैली में शामिल हुए ।

महासम्मेलन में इतनी बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए, इसके बावजूद भी पूरे समय कार्यक्रम में अनुशासन बना रहा और किसी भी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई । छोटी मोटी घटना को छोड़कर सारे लोग सुरक्षित अपने अपने घर पहुंच चुके हैं ।

कार्यक्रम कई सत्रों क्षेत्रों में संचालित हुआ । प्रथम दिवस (13 जनवरी 2021) में आदिवासियों की शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था को लेकर देश भर से आए हुए कार्यकर्ताओं द्वारा विचार मंथन किया गया । शाम को खुला सत्र प्रारंभ हुआ जो रात्रि के 3:00 बजे तक चला, दूसरे दिन (14 जनवरी, 2021)- आदिवासी सांस्कृतिक एकता महारैली, उद्घाटन सत्र, युवा सत्र, महिला सत्र एवं प्रबोधन सत्र सफलतापूर्वक संचालित हुए । साहित्य सत्र सही रूप में नहीं चल सका इसके लिए खेद है । लेकिन साहित्य के क्षेत्र से जुड़े हुए कार्यकर्ता को मुख्य मंच से अपनी बात रखने का अवसर दिया गया ।

संपूर्ण मध्य प्रदेश के कार्यकर्ता और विशेष रूप से रतलाम, झाबुआ तथा अलीराजपुर के कार्यकर्ताओं व बुद्धिजिवियों ने महासम्मेलन स्थल पर समय से पहले पहुंच कर इस महासम्मेलन को सफल बनाने हेतु रात दिन एक किया। कम समय में महासम्मेलन हेतु संसाधन जुटाना बहुत कठिन काम था । लेकिन इस महासम्मेलन में मध्य प्रदेश राज्य के कार्यकर्ताओं के अलावा दूसरे राज्य के कार्यकर्ताओं का सहयोग भी अमूल्य रहा । जिसका हम शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते हैं । महाराष्ट्र राज्य के कार्यकर्ताओं की ओर से चावल तथा नासिक महाराष्ट्र के कार्यकर्ताओं की ओर से महासम्मेलन में लगने वाले सम्पूर्ण मसाले दिया गया । राजस्थान के कार्यकर्ताओं द्वारा महासम्मेलन में लगने वाली सम्पूर्ण सब्जी तथा नगद सहयोग भी किया गया । दादरा नगर हवेली के कार्यकर्ताओं द्वारा चावल प्रदान की गई । गुजरात के कार्यकर्ताओं द्वारा महासम्मेलन की थीम बनाने में लगने वाले सम्पूर्ण खर्चे का वहन किया गया । अभी अन्य राज्य के कार्यकर्ताओं से नगद राशि भी प्राप्त होने की अपेक्षा है । मध्य प्रदेश के सभी जिलों से ओर से नगद राशि एवं अनाज का सहयोग प्राप्त हुआ । समय अभाव के कारण मंच से हम सहयोग कर्ताओं के नाम नहीं ले सके इसके लिए आयोजन कमेटी की ओर से समाज के सभी कार्यकर्ताओं के चरणो में नतमस्तक होकर क्षमा प्रार्थी हैं ।

यह महासम्मेलन यदि ऐतिहासिक रूप से सफल हुआ है तो उसमें किसी व्यक्ति विशेष या संगठन विशेष का कोई विशेष योगदान रहा ऐसा बिल्कुल नहीं है,बल्कि आदिवासी समाज के सभी संगठनों एवं हर छोटे बड़े कार्यकर्ताओं का अहम एवं अवर्णनीय योगदान रहा है । जिसका हम शब्दों नहीं बांध सकते हैं ।

यह महासम्मेलन कार्यकर्ताओं के सहयोग, ताकत व समाज की एकता से सफल हुआ है ।

अंत में पुनः इस ऐतिहासिक महासम्मेलन को सफल बनाने वाले सभी कार्यकर्ताओं को जिन्होंने प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अपनी सीमाओं से आकर सहयोग किया उन सभी हम हृदय की अनंत गहराइयों से बधाइयां देते हुए शुक्रिया अदा एवं आभार व्यक्त करते हैं ।

इतने बड़े महासम्मेलन में जो कुछ भी कमियां रही उसे यहां वर्णन न करते हुए आयोजन कमिटी की ओर समाज के लोगों से माफी मांगना ही उचित समझते हैं । हम कोई स्पष्टीकरण नहीं देना चाहेंगे कि जिस किसी भी साथी को लगता है कि यह बात ठीक नहीं हुई उनसे हम सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हैं और अपेक्षा करते हैं कि आप अपनी बात को आदिवासी एकता परिषद के प्लेटफार्म पर पहुंचाना चाहते हैं तो व्यक्तिगत व्हाट्सएप नंबर पर अपना सुझाव अनिवार्य रूप से देवें जिससे कि आने वाले समय में उन सुझावों को अमल में लाया जा सके ।



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