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आखिर जातिवाद सोच कब तक? आदिवासी महिला प्रोफेसर हुई इसका शिकार।

Updated: Mar 21, 2021

बंगाल में जातिवाद नहीं होता..!! मतलब दिखता नहीं.. यहाँ के ‘भद्र’ लोग मौक़ा मिलने पर ‘अभद्र’ होने में देर नहीं लगाते.. ख़ासकर मामला जब वंचित समुदाय/जाति विशेष के लोगों से जुड़ा हो तो ‘भद्र’ लोगों की नफ़रत और चिढ़ उछाल मारने लगती है। यहाँ तो एक छात्रा एक शिक्षक के ख़िलाफ़ ही आरक्षण को लेकर अपनी नस्लीय

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और जातिगत कुंठाओं की उल्टियाँ करने लगी। जादवपुर विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में संथाल आदिवासी समुदाय की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ Maroona Murmu के फ़ेसबुक पोस्ट पर Bethune College के बांग्ला विभाग की एक छात्रा पारोमिता घोष ने डॉ मुर्मू के आदिवासी होने तथा आरक्षित वर्ग से आने को लेकर तमाम आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं । प्रोफ़ेसर द्वारा ब्लॉक किए जाने के बाद उस लड़की ने अलग से कई पोस्ट लिखा। यहीं नहीं, फिर महिला आदिवासी प्रोफेसर को बाकायदा ट्रोल किया जाने लगा।

डॉ मुर्मू की 'गलती' यह थी कि उन्होंने कोरोना काल में परीक्षा कराए जाने को लेकर विद्यार्थियों के हित में पोस्ट लिखा था, जहाँ उस लड़की का जातिगत पूर्वाग्रह उमड़ पड़ा। 'प्रजाति' विशेष से आने वाले ऐसे शोहदे लड़के-लड़कियों की यह मानसिक ट्रेनिंग अक्सर उनके घर-परिवार से शुरू होकर भारतीय परिवेश में बह रही नस्लीय/जातिगत हवा में घुलकर होती है। इसके पूर्व कोलकाता के रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय में भी एक महिला आदिवासी प्रोफेसर के साथ भेदभाव की घटना हुई थी। संविधान लागू होने के सत्तर साल बाद भी यह सब हो रहा है, जो हरगिज़ बर्दाश्त करने लायक़ नहीं है। दलित-आदिवासी तबके के साथ नफरत का यह सिलसिला आख़िर कब रुकेगा ?


लेखक:- डॉ. सुनील कुमार "सुमन"

प्रभारी क्षेत्रीय केंद्र महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा कोलकाता



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